राजनीतिक विश्लेषकों के लिए चुनौती साबित होते महाराष्ट्र चुनाव। 

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मुकेश कबीर।

राजनीतिक विश्लेषकों के लिए चुनौती साबित होते महाराष्ट्र चुनाव। 

इस बार महाराष्ट्र का चुनाव नेताओं से ज्यादा कठिन है चुनावी पंडितों और विश्लेषकों के लिए। देश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी राज्य में आठ पार्टियों के बीच में खींचतान हो रही है। गठबंधन एक दूसरे के खिलाफ तो लड़ ही रहे हैं साथ ही अंदर ही अंदर आपस में भी लड़ रहे हैं। ये चुनाव अंडरवर्ल्ड की गैंगवॉर जैसा हो गया है, आप घोड़ा लेकर सामने वाले को टारगेट कर ही पाते हो कि पीछे से आपका ही गुर्गे आपके अंदर गोली उतार देता हैं। इसलिए आज यह कह पाना मुश्किल है कि आखिरी तक कौन टिकेगा, कौन बिकेगा और कौन बचेगा। सारे विश्लेषक चुपचाप बैठे हैं या फिर जिसको जो दिख रहा वैसा बोल रहा है ऑथेंटिक कोई नहीं है। वैसे भी पिछले दो चुनाव में सारे विश्लेषक धराशायी हो चुके हैं। लोकसभा में सारे के सारे चार सौ पार कर रहे थे और बाद में हरियाणा में सब के सब बीजेपी को हरवा रहे थे लेकिन परिणाम आया तो दोनों चुनाव में नेताओं से ज्यादा विश्लेषकों की हार हुई ।इसलिए महाराष्ट्र के बारे में कोई कुछ बोलेगा इसकी उम्मीद कम ही है, महाराष्ट्र जैसा चुनाव देश के इतिहास में आज तक नहीं हुआ। यहां नेता भी संशय में हैं और जनता भी, इसमें चुनाव के मुद्दे भी घालमेल हो गए हैं, कहीं मराठी मानुष मुद्दा है तो कहीं हिंदुत्व। कहीं विकास तो कहीं कानून व्यवस्था और इन सबसे बढ़कर कैंडिडेट की निष्ठा भी कसौटी पर है। इस बार गद्दारी भी एक मुद्दा है लेकिन मजे की बात यह है कि एक पार्टी के गद्दार के खिलाफ दूसरी पार्टी का गद्दार भी मुकाबले में है, कुल मिलाकर मामला गड़बड़ है।

वैसे यह चुनाव बहुत सरल हो जाता यदि महाविकास अघाड़ी उद्धव ठाकरे को सीएम कैंडिडेट घोषित कर देती। महायुति की तरफ से तो सीएम फेस शिंदे हैं ही लेकिन उनकी टक्कर का सामने कौन है यह अभी तय नहीं है। यदि उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री घोषित किया जाता तो मामला न केवल बराबरी पर आ जाता बल्कि अघाड़ी सही में अघाड़ी हो जाता क्योंकि अभी तक जितने भी सर्वे आए हैं सभी में मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव लोगों की पहली पसंद है। इसके अलावा ढाई साल बनाम ढाई साल का मुद्दा देखें तो उद्धव का कार्यकाल ज्यादा बेहतर था जनता की नजर में जबकि उद्धव ने स्वयं कोरोना जैसी महामारी को भी झेला था और उसके बाद भी मुंबई जैसे महानगर को सुरक्षित रखने में सफल हुए थे। उद्धव के मुख्यमंत्रित्व काल में लॉ एंड ऑर्डर भी बेहतर था खासकर मराठी मानुष और महिलाएं सुरक्षित महसूस करते थे जबकि शिंदे के कार्यकाल में लॉ एंड ऑर्डर उतना अच्छा नहीं है और रेप की भी काफी घटनाएं सामने आई हैं । महायुति के एक दो ऐसे नेता भी सामने आए हैं जिन्होंने अपने कमेंट में महिला विरोधी टिप्पणी की है।आदित्य ठाकरे ने ऐसे दो नेताओं के नाम भी बताएं और आश्चर्य यह है कि वे नेता शिंदे सरकार में मंत्री हैं। यह महाराष्ट्र में बहुत संवेदनशील मामला रहेगा, वहां की राजनीति उत्तरभारत जैसी दागदार नहीं होती और दूसरी बात यह है कि बीजेपी ने खुद उद्धव के गृह मंत्री पर अपराधिक आरोप लगाए थे फिर उद्धव सेना क्यों चूकेगी ? और ट्विस्ट यह है कि जिस नवाब मालिक को बीजेपी ने दाऊद का रिश्तेदार बताया था,जिसे अंडरवर्ल्ड का मंत्री बताकर विरोध किया था उसी नवाब मालिक को महायुति ने टिकिट दिया है। अब देखते हैं चार तारीख को नवाब का नाम वापस होता है या नहीं, यदि नवाब चुनाव में आखिरी तक बने रहे तो महायुति को नुकसान उठाना पड़ेगा।आज भले ही महायुति के प्रवक्ता प्रेम शुक्ला कहते हैं कि “नवाब मालिक बैठ जाएंगे”, लेकिन वास्तव में ऐसा मुश्किल लगता है क्योंकि अजित पवार नवाब मालिक को बैठाकर अपने मुस्लिम वोट बैंक को गवाना नहीं चाहेंगे और महायुति को भी उद्धव के मुस्लिम वोटर्स में सेंध लगाना है तो नवाब मलिक को चुनाव में रखना पड़ेगा इसलिए नवाब मलिक के बैठने की संभावना कम ही लगती है। यदि नवाब मालिक नहीं बैठे तो बीजेपी का हिंदुत्व दांव पर लगेगा। भाजपा ने उद्धव सरकार गिराते वक्त हिंदुत्व का ही नारा दिया था और नवाब मालिक को खास तौर से टारगेट किया गया था। खैर, आगे देखते हैं क्या होता है। चुनाव से पहले तो बागियों को मनाने और बैठाने में ही राजनीतिक दलों की आधी ताकत तो खत्म हो ही जाएगी। बचे खुचे बागी निस्संदेह बहुत बड़ा असर डालेंगे। आज के समय में सारे बागी सांप के मुंह में छछूंदर जैसे हो चुके हैं जिन्हें निगलना भी मुश्किल है और बाहर निकालना भी मुश्किल है। महाराष्ट्र में इतने सारे ट्विस्ट के कारण ही विश्लेषकों को पसीने आ रहे हैं। संभवतः इसीलिए किसी ने भी अभी तक किसी भी एक पक्ष को मजबूत या कमजोर नहींबताया है। इस चुनाव में एक और मजेदार बात है राज ठाकरे की एंट्री।राज की एंट्री भी रोचक असर डालेगी। लोकसभा में राज एनडीए के साथ थे इसलिए कई लोग राज को बीजेपी की बी टीम कह रहे हैं। शिंदे ने राज ठाकरे का विरोध कर दिया है इसलिए राज अघाड़ी की बी टीम साबित हो सकते हैं। राज एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनके सभी पार्टियों में समर्थक और विरोधी हैं और वे निष्पक्ष हैं, उनके बारे में कहा जाता है कि वो जीते नहीं तो वोट तो कटवा ही देते हैं, अब राज किसके वोट कटवाते हैं यह भी एक फैक्टर होगा परिणाम का। वैसे कुछ भी हो इस चुनाव में यदि कोई केंद्र बिंदु हैं तो वह हैं उद्धव ठाकरे, यह चुनाव असल में अग्निपरीक्षा उद्धव की ही है, उद्धव ने लोकसभा में दमदार परफार्मेंस देकर उम्मीदें भी बढ़ा दी हैं लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग होता है सब जानते हैं लेकिन कितना अलग होगा यह कोई नहीं जानता और कोई जान भी नहीं पाएगा क्योंकि यह महाराष्ट्र का चुनाव अर्थात महाचुनाव है। इसमें सब कुछ महा है, कम कुछ भी नहीं है इसलिए परिणाम भी महा ही होने वाला है।  (विभूति फीचर्स)

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