
अपनी माटी की खुशबू सहेजे जब खनकती आवाज की जादूगर शारदा सिन्हा के स्वर बिहार से निकले तो पूरे पूर्वांचल ही नहीं देशभर के भोजपुरिया समाज पर छा गए। लोक परंपराओं को सजोए गीत भी ऐसे की जिन्हें जितनी बार सुनिए उतनी बार नयापन का अहसास और मिठास जो मन को भावों से भर दे। खासकर छठ महापर्व पर शारदा सिन्हा के गीत कान में न पड़ें तो जैसे अनुष्ठान ही अधूरा हो। लोक मानस से जुड़े महापर्वारंभ पर उनका जाना गायिकी के एक युग का अंत हो जाना कहा जाएगा। अभी छठ की छटा बिखरने वाली थी, उनके गीत लोगों की जुबां पर उतरने वाली थी तभी भोजपुरी के स्वरों की साधिका अपने लाखों-लाख प्रशंसकों को अलविदा कह गईं। रह गईं तो उनकी यादें, उनके गीत और संकल्प जिसके विकल्प शायद ही मिल पाएं। उनका जाना काशी को अखर गया।