स्वरचित सु श्री सुजाता कुमारी चौधरी
इंदौर मध्य प्रदेश।
जिंदगी की पहली शिक्षक होती हैं,मांं
ईश्वर की बनाई हुई,सबसे ख़ूबसूरत रचनाओं में से एक है, मां।
बनी दुनिया की पहली शिक्षक मां,
शिक्षा संस्कार हमे सिखाती, हर सही _ गलत का फर्क हमें बताती।
हमारी गलतियों को सुधारती रहती।
प्यार वहा हम पर बरसाती। तबीयत अगर हो जाए खराब, दिन रात हमारी देखभाल वो करती।
रातों की निंद भूलकर, खुद हमे वो सुलाती, स्नेह बरसाती।
बिन मां रहना, जीवन हैं, अधूरा खाली _खाली जग लगता सारा सुना_ सुना।
जिन्दगी में उसका दुलार काफी हैं,
सर पर उसका हाथ काफी हैं।
दूर हो या पास हो, क्या फर्क पड़ता हैं।
मां का तो बस एहसास ही काफी हैं।
मां को कभी दुःख मत देना।
मां से ही दुनियां है, हमारी। मां की सेवा करना, परम् कर्तव्य ।
क्योंकि मुझे, दुनिया में लाने वाली ही, मेरी सांसे देने वाली ही मां हैं, मेरी।
हर दर्द को सहकर, इस दुनियां में बुलाया मुझे।
वो, मां हैं, मेरी।
नौ माह पेट में रखती हैं,।
अन गिनत दर्द वो सहती।
सारी तकलीफ वो सहती,।
धूप में खुद जलती, छांव हम पर बनाती।
खुद भूखी रहकर के भी भर पेट भोजन हमें खिलाती।
फिर दुनिया में मां को ही क्यों भूल जाते हैं।
कामयाबी मिलते ही, मां का ही साथ छोड़ जाते हैं।
पर भूल जाते हैं, उन्नति की पहली सीढ़ी ही हैं, मां।
दुनियां में ईश्वर की ही पूजा करते, पर ईश्वर के दूसरे रूप को ही पहचान नही पाते।
जिन्दगी, मां हैं, क्योंकि जिन्दगी देने वाली ही मां हैं।
मां के कदमों में ही हैं, स्वर्ग बसा।।