उमंग, उल्लास और हर्ष लेकर दुनिया भर में आता है नव वर्ष।

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चारु सक्सेना।

 

उमंग, उल्लास और हर्ष लेकर दुनिया भर में आता है नव वर्ष।

नयी उमंगें, नया उत्साह,नया उल्लास नया हर्ष लेकर नव वर्ष हर वर्ष आता है, ताकि आने वाले वर्ष में व्यक्ति अपने अधूरे कार्यों को पूरा कर सके। नववर्ष के स्वागत का पर्व अलग अलग देशों में अपनी-अपनी संस्कृति के अनुरूप अलग-अलग रंग से मनाया जाता है। हमारे यहां नववर्ष चैत्र में मनाया जाता है, जब विक्रम संवत बदलता है। कहीं-कहीं मकर संक्रांति या अन्य अवसरों पर भी अलग-अलग कैलेण्डरों के अनुसार नववर्षारम्भ तथा उसके अनुरूप उत्सव मनाने की परंपरा है।

म्यांमार में नववर्ष’ 

भारत के पड़ोसी देश म्यांमार (बर्मा) में नववर्ष के इस उत्सव को ‘तिजान’ कहते हैं। जो तीन दिन तक चलता है। लगभग एक सप्ताह पूर्व से इसकी तैयारियां शुरू हो जाती है। बर्मी लोग इस दिन गौतम बुद्ध की पूजा करते हैं।अपने मकानों से बाहर सड़क पर जगह-जगह शामियाने लगाते हैं और वहां दोस्तों और रिश्तेदारों को मिठाइयां खिलाई जाती हैं। उसके बाद वे आपस में एक-दूसरे पर सुगंधित जल डालकर पूरे वातावरण में खुशबू फैला देते हैं।

चीन में नववर्ष’

पड़ोसी देश चीन में नववर्ष प्रारंभ होने के एक सप्ताह पूर्व से उत्सव मनाया जाता है। इस दिन आतिशबाजी के साथ ही बीते वर्ष को विदा करके नए वर्ष का स्वागत किया जाता है। पुराने जमाने में चीन में यह मान्यता थी कि प्रत्येक परिवार की रसोई में एक देवता रहता है, जो उस परिवार की गतिविधियों पर अपनी रिपोर्ट तैयार करके वर्ष के अंत में ईश्वर के पास उसे देने के लिये जाता है और नए वर्ष के प्रारंभ होने के साथ ही वापिस उस परिवार में लौट आता है। आतिशबाजी की परम्परा, उस देवता के जाने की विदाई और लौट आने के स्वागत समारोह के साथ जुड़ी है। पिछले वर्ष और नए वर्ष के मध्य की रात्रि में चीन के लोग पूरी तरह जागरण करते हैं और अगले दिन तरह-तरह के पकवान बनाकर खाते हैं।

जापान में नववर्ष’

नववर्ष के उपलक्ष्य में जापान में घरों को हरे बांस और चीड़ की लकड़ियों से सजाया जाता है तथा मेहमानों को स्वादिष्ट भोजन कराया जाता है। जापानी लोग इस अवसर पर किसी का ऋण लौटा देना अपना कर्तव्य मानते हैं। यदि किसी जापानी के पास ऋण चुकाने के लिये धन न हो तो वह अपने घर का सामान बेचकर भी ऋण चुकाने का प्रयत्न करता है। इसके लिये जापान में एक विशेष बाजार भी लगाया जाता है। जहां सामान का उचित मूल्य भी मिल जाता है। जापान में इस दिन पतंग उड़ाने का भी प्रचलन है। छोटे बच्चों की पढ़ाई शुरू करने के लिये भी इस दिन को जापान में शुभ माना जाता है। जापान में नववर्ष के त्यौहार तीन दिनों तक मनाये जाते हैं। इन दिनों वहां मनाये जाने वाले त्यौहार को ‘याबुरी’ के नाम से पुकारा जाता है। इन तीनों दिनों में लोग खूब खुशियां मनाते हैं और खाते-पीते हैं। वहां नए साल के पहले दिन स्वच्छ जल पीना आवश्यक होता है। ऐसी मान्यता है कि इस प्रकार स्वच्छ जल पीने से मनुष्य दीर्घायु होता है। अन्य देशों की भांति वहां भी लोग इस दिन एक दूसरे को शुभकामनायें देते हैं।

मॉरीशस में नववर्ष’ 

मॉरीशस में नववर्ष को प्रमुख पर्व माना जाता है। मॉरीशस विभिन्न देशों के निवासियों का संगम है।यहां नववर्ष सभी जातियों के लिये एक उत्साह लेकर आता है। नववर्ष मनाने के लिये यहां एक महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। घरों की सफाई व पुताई की जाती है। लोग नये-नये कपड़े व एक-दूसरे को देने के लिये उपहार खरीदते हैं। व्हिस्की, वाइन आदि पहले से ही खरीद लाते हैं। 31 दिसम्बर के दिन परिवार के सभी सदस्य और मित्रगण एक जगह पर एकत्रित होते हैं। रात को 12 बजे तक शराब पीते व ताश खेलते हैं। 12 बजे के बाद सब लोग एक कमरे में इक‌ट्ठे होकर ‘शैम्पेन’ पीते हैं तथा ‘किस’ कर शुभकामनायें देते हैं तथा सुबह पांच बजे तक नृत्य चलता है, फिर सुबह सब नहा-धोकर नए वस्त्र पहनकर एक-दूसरे के घर जाकर शुभकामनायें देते हैं तथा ‘पेय’ आदि का सेवन करते हैं।

अफगानिस्तान में भी नववर्ष’ 

अफगानिस्तान में नववर्ष पहली जनवरी को न मनाकर ‘अमल’ की पहली तारीख अर्थात अंग्रेजी कैलेण्डर की 21 मार्च को मनाया जाता है। 20 मार्च को खुशी का दिन होता है। उस रात हरी सब्जियों के साथ-साथ कड़ी चावल भी बनते हैं। लोग नए कपड़े पहनते हैं। 12 बजे बत्तियां बुझा दी जाती हैं । लोग 12 बजते ही एक दूसरे को नववर्ष को शुभकामनायें देना शुरू कर देते हैं। उसके बाद दो-तीन बजे के लगभग घर से बाहर कहीं जाना तथा घास पर चलना जरूरी होता है। इसे ‘सबजाला-हा-गाटकरदान’ कहते हैं।

तंजानिया में नववर्ष’

तन्जानिया में ईद तथा क्रिसमस प्रमुख पर्व होने की वजह से नववर्ष बहुत धूमधाम से नहीं मनाया जाता। नववर्ष की खुशी में तन्जानिया में 30 दिसम्बर की शाम से नृत्य व संगीत लहरी छिड़ जाती है। लोग शाम को लोकनृत्य करते हैं। वे अपने घरों, दफ्तरों तथा अन्य इमारतों को सजाते हैं। कुछ लोग क्लब जाते हैं। जहां म्यूजिक चलता है। यहां लोगों का मुख्य काम नववर्ष पर व्हिस्की पीना होता है। लोग एक-दूसरे को शुभकामनायें देते हैं ‘उफवातु’ ‘नाम्वाकाम्पया’ अर्थात नववर्ष के साथ खुश रहो।

थाईलैण्ड में नववर्ष’

थाईलैण्ड में 30 दिसम्बर को ही खाने-पीने की चीजें तैयार की जाती हैं तथा पार्टी दी जाती है। इस दिन विशेष खाना बनता है। रात्रि में लोग बाहर जाते हैं तथा अर्द्धरात्रि को किसी दूसरे के घर या किसी विशेष स्थान पर नववर्ष मनाते हैं। नृत्य व संगीत प्रमुख आकर्षण होता है।

बौद्ध धर्म वाले पहली तारीख को सुबह अपने मंदिर जाते हैं। मोनेस्ट्री में बौद्ध भिक्षुओं को खाना दिया जाता है। नववर्ष के इस समारोह को ईरान में ‘नौरोज’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन परिवार के सदस्य एक मेज के चारों ओर बैठते हैं तथा बारी- बारी से अंकुरित बीजों को पानी से भरे बर्तन में डालते हैं, जो मेज के बीचोंबीच रख दिया जाता है। इस बर्तन के इर्द-गिर्द एक शीशा, झंडा, एक मोमबत्ती तथा एक रोटी रखी रहती है। ऐसा करना ये लोग बड़ा शुभ मानते हैं। रात्रि को ईरान के लोग अपने-अपने घरों पर रोशनी करते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनायें देते हैं।

इंडोनेशिया में नववर्ष’

इंडोनेशिया में नववर्षोत्सव ‘को ‘गांलून’ के नाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग वहां नये वस्त्र पहनते हैं। तरह-तरह के पकवान खाते हैं और आपस में एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं।

 

आस्ट्रेलिया में नववर्ष’ 

यहां नववर्ष बड़े उल्लास व परम्परागत ढंग से मनाने की परम्परा है। यहां इसे क्रिसमस पर्व की भांति ही आनन्दपूर्वक मनाते हैं। इस दिन वहां लोग जमकर खुशियां मनाते हैं, खाते-पीते हैं तथा एक- दूसरे को शुभकामनायें देने की परम्परा भी है। इसके अतिरिक्त आस्ट्रेलिया में नववर्ष पर लोग एक-दूसरे को शुकर की अनुकृति, चिमनी, बुश, नाल के आकार की एक वस्तु, व्लीकर के चार पत्ते, चांदी और स्वर्ण मुद्रा आदि भी देते हैं। इन्हें वहां सौभाग्यशाली माना जाता है।

रुस में दो नववर्ष’ 

रूस में एक ही वर्ष में दो बार नववर्ष के त्यौहार को मनाने की परम्परा है। पूरे विश्व के साथ पहली जनवरी को यहां भी नववर्ष मनाया जाता है। लोग खूब खुशियां मनाते हैं। खाते-पीते व एक दूसरे को शुभकामनायें देते हैं। इसके कुछ ही दिन बाद तेरह जनवरी को पुनः रूस में नववर्ष मनाया जाता है। पुरानेने जमाने में रूसी लोग परम्परागत वर्ष को ही मानते थे। उनका वर्ष आज के अंग्रेजी कैलेण्डर से 13 दिन पश्चात होता था, इसलिये 13 जनवरी भी उनके लिये महत्वपूर्ण हो गयी। यही परिपाटी वहां आज भी प्रचलित है। अतः वहां नववर्ष दो बार मनाया जाता है। दूसरे अवसर यानी 13 जनवरी को भी लोग विभिन्न समारोह आयोजित करके खुशियां मनाते हैं. दावतें खाते हैं और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इस प्रकार पूरे विश्व में नववर्ष एक नई चेतना व उल्लास के साथ मनाया जाता है। (विभूति फीचर्स)

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