
इंजी.अरुण कुमार जैन
लघुकथा
मुस्कान मनुहार
सर्दी की ठंडी रात्रि थी, हवा में ठिठुरन थी। ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। भरे स्लीपर कोच में एक सुन्दर युवती अपने वृद्ध माता, पिता व दो छोटे छोटे बच्चों के साथ चढ़ी।
ट्रेन में कुछ लोग खाना खा रहे थे तो कुछ सोने की तैयारी कर रहे थे। जिनका रिजर्वेशन नहीं था वे टॉयलेट के पास या पैसेज में खड़े, बैठे चिरौरी, निवेदन कर यात्रा कर रहे थे।युवती का परिवार भी इसी तरह खड़ा हो गया।
“पापा आप चिंता न करें, मैं आप लोगों के बैठने की व्यवस्था करती हूँ।”युवती के स्वर में विश्वास था।
“क्यों मज़ाक कर रही है बेटी, इतने सारे लोग पहिले से ही यहाँ खड़े हुये हैं, हम भी खड़े रहेंगे। ” पिता ने सहजता से कहा।
बात को अनसुनी कर वह कोच में आगे बढ़ी, “प्लीज थोड़ी सी जगह देंगे, बस आधे घंटे के लिये “सौंदर्य से भरी युवती की मुस्कान व मधुर स्वर जादू कर गया।
कई लोग खिसक कर जगह बनाने लगे, वे सभी उसे अपने पास बिठाने को आतुर थे।
“आइये.. आइये, एडजस्ट हो जायेंगे। “कई स्वर एक साथ उभरे।
“मम्मी जी आप यहाँ बैठ जाइये, पापा जी आप यहाँ भैया के साथ आ जाएं और बच्चों तुम भी यहाँ आ जाओ अंकल के पास। ” कहकर दो केबिनों में सेवाभावी युवकों के साथ उसने अपने परिवार के सभी सदस्यों को बैठा दिया। (विनायक फीचर्स)