
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र, वाराणसी।
साहस
साहस से सबकुछ मिले, बिन साहस अँधियार।
सदा साहसी मनुज का, होता है विस्तार।।
जोशीले अंदाज में, करता वह हर काम।
बना सफल वह चहकता, करता रोशन नाम।।
साहस में उत्साह है, लक्ष्य हमेशा पास।
लक्ष्य भेदता साहसी, खुशियों का अहसास।।
सहज प्रेरणा स्रोत का, जब होता विस्तार।
साहस की ऊर्जा जगे, शक्तिमान व्यवहार।।
मन में भरे उमंग तब, हो विराट मन लोक।
रोम-रोम में हर्ष का, तरुवर उगे अशोक।।
मन- काया से शोक का, होता सत्यानाश।
दिव्य पथिक सा साहसी, चूमे भव आकाश।।
साहस अरु उत्साह से, सकल धरा को माप।
मनबल -बुद्धि- विवेक से, मिटे कष्ट- संताप।।
दम्भहीन है साहसी, देता शुभ संदेश।
मत अनर्थ- अन्याय का, कभी करो उपदेश।।