
ब्यूरो उत्तरकाशीः सुरेश चंद रमोला, (ब्रह्मखाल)
खुशहाली और लोक संस्कृति के प्रतीक हैं भंडारस्यूं में नागराजा की थौलू।
आश्विन की संक्रांति से अगले दस दिनों तक भंडारस्यूं पट्टी के विभिन्न गांवों और उच्च हिमालयी क्षेत्र के डांडो पर आयोजित होने वाले मेले खुशहाली और पौराणिक संस्कृति के प्रतीक माने जाते हैं। आश्विन संक्रांति के दिन इस वर्ष भी दनाऊ के डांडे पर नागराजा के मेले का शुभारंभ पौराणिक संस्कृति के आधार पर आयोजित हुआ। माडियासारी-मसून , पैंथर और डांग से आई नागराज की देव डोलियों ने इस मेले मे सिरकत कर भक्त जनों को अपना शुभाशीष दिया और इस नौ दिवसीय मेले का शुभारंभ भी किया। उच्च हिमालयी क्षेत्र के दनाऊ में दर्जन भर गांव के श्रद्धालुओं ने अपने इष्टदेव नागराज को श्रद्धा के श्रीफल और पीत-श्वेत वस्त्र अर्पित किये। फूल मालाओं से सजी देव डोलियों को कंधौं नचाते ग्रामीणों में भारी उत्साह और उमंग दिखाई दिया। नागराज और सिद्ववा देवताओं ने अपने मालियों पर प्रकट होकर खुशहाल रहने का आशीर्वाद भक्तों को दिया। मान्यता है कि आश्विन में ग्रामीणों के खेत खरीफ की फसलों से लहरा रहे होते हैं और अच्छी उपज के लिए भंडारस्यूं में ग्रामीण अपने इष्टदेव नागराजा से आशीर्वाद लेते हैं इसके बाद ही फसल की कटाई होती है। परम्परा के अनुसार सभी श्रद्धालु अपने घरों से दूध लाकर नागराजा को दूध से नहलाते है और पीली पिंठाईं मस्तक पर चढ़ाते हैं जिससे नागराज अति प्रसन्न होते हैं। द्याणियां भी अपने-अपने ससुराल से इन मेलों में बड़ी संख्या में आकर आस्था की डुबकी लगाते हैं । अगले कुछ दिनों तक यह मेले भंडारस्यू पट्टी के अलग अलग गांव क्षेत्र माडियासारी, मसून, पैंथर, देवल डांडा, जुणगा, टिपरा, रेस्गी, डिमकी सौंड और मंजगांव में आयोजित होंगे। मेले की भब्यता और दिव्यता में स्थानीय ग्रामीण बड़े उत्साह के साथ रासू, तांदी, छौपुती व सांस्कृतिक संध्या का आयोजन भी करते हैं।