
डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या, (उ0प्र0)
सवेरे-सवेरे
ये किसने जगाया सवेरे-सवेरे।
है आसव पिलाया सवेरे-सवेरे।।
लिए संग अपने चिराग़े मोहब्बत।
अँधेरा भगाया सवेरे-सवेरे।।
रहा द्वंद्व दिल में पता भी नहीं था।
किसी ने जताया सवेरे-सवेरे।।
गया भूल था जो सबक ज़िंदगी का।
किसी ने सिखाया सवेरे-सवेरे।।
हुई आँख भारी लगा सोचने जब।
सपन प्यारा आया सवेरे-सवेरे।।
सपन में जो नक़्शा रहा था अधूरा।
किसी ने बनाया सवेरे-सवेरे।।
सधी जब नहीं थी ग़ज़ल रात मुझसे।
किसी ने सधाया सवेरे-सवेरे।।
महक जिस पे था नाज़ भी बागबाँ को।
हवा ने चुराया सवेरे-सवेरे ।।