
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र, वाराणसी।
मेरे पिता जी
सरल स्वाभाव विनीत पिता जी।
कर्मठ सत्य पुनीत पिता जी।।
अति संतोषी संन्यासी से।
सहज उदार ग्रामवासी से।।
सबकी पंचायत वे करते।
सच्ची बात सदा वे कहते।।
नहीं किसी से वे डरते हैं ।
सदा भलाई पर डटते हैं।।
दुख -दर्दों को सह लेते हैं ।
प्रेमामृत रस भर देते हैं।।
ईश्वरवादी नूर पिता जी।
दयावान भरपूर पिता जी।।
जंगल में भी मंगल लाते ।
राम चरण में मन बहलाते।।
स्वच्छ हृदय निर्मल प्रिय उत्तम।
पिता मनोरम सज्जन अनुपम।।