
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र, वाराणसी।
प्रदूषण से हानि
हवा बनी अब विष का सागर।
दिखता यहाँ न अब अमृत सर।।
जल दूषित हो गया आज है।
निर्मल जल का अब अभाव है।।
गंदे नाले गंदी गलियाँ।
गिद्ध दृष्टि रखते सब बनिया।।
दूषित छाया आज मिल रही।
गंदी माया आज खिल रही।।
नदी नीर में शहरी मैला।
मन हो गया बहुत मटमैला।।
दूषित मन में विष का थैला।
घूम रहे सब गंदे छैला।।
अधिक प्रदूषण सता रहा है।
बीमारों को मार रहा है।।
भोजन -अन्न सभी दूषित हैँ।
हाहाकार आज पोषित है।।