
अंजु दास गीतांजलि, पूर्णिया, बिहार।
लघुकथा।
आँखों की दहलीज पर जिसके सपने बसते थे दोनों दोनों से जैसे हमेशा यही कहते थे हम दोनों की आँखें हम दोनों का घर है हम दोनों चाहे इस आंखों के घर में रह ले या उस आँखों के घर में रह ले रहेगें तो आखिर इक दूजे की आखों में ही न ।
समर पेंट शर्ट पहनकर तैयार होकर पोटिको में बैठा था और अम्बा को आवाज दे रहा था कि तुमलोग तैयार हुए कि नहीं जल्दी करो लेट हो रहा है क्योंकि मुहल्ले में शादी समारोह था और पूरा परिवार उसमें शामिल होने के लिए तैयार हो रहें थे कि…..
अचानक मेन गेट खुला तो समर ने देखा सामने दीप रजन था उसे देखते ही बोला अरे आइये आइये।
दीप रंजन समर के साथ आकर पोटिको में बैठ गया और बोला भैया लगता है आप कही निकल रहें हैं समर ने कहा हाँ बगल में ही शादी में जा रहे हैं लेकिन भाभी अभी तक तैयार ही हो रही है जल्दी करें तो जल्दी से जाए और आए। दोनों आपस में फिर इधरउधर की बात करने लगे ।
लेकिन दीप रंजन के दिमाग में क्या चल रहा था समर इससे अनजान था दीप रंजन समर से टोलेट करने की बात बोलकर घर में प्रवेश किया और देखा कि बाथरूम के ही बगल में अम्बा तैयार होने में मशगूल है, दीप रंजन होले से चुपके से धीरे पाँच उसके कमरे में गया और जैसे ही अम्बा मुडी और बोली अरे आप कब आए वैसे ही दीप रंजन ने उसके गले में बाँहें डालकर अपने साथ चार पाँच पीक उसके साथ निकाल लिया और हँसते हुए चिढाते हुए बोला भाभाजी आज तो आप गजब ढा रही है बला की खूबसूरत लग रही है। दीप रंजन अचानक ऐसी हरकत करेगा उसके साथ अम्बा इसकी कल्पना भी नहीं कि थी उसे दीप रंजन पर बहुत गुस्सा आया और गुस्साते हुए बोली ये क्या बदतमीजी है आपने मेरी ऐसी पीक कैसे लिया हिम्मत कैसे हुई आपकी । दीप रंजन ने कहाँ अरे भाभी आप तो गुस्सा गयी देवर बोलतीं है तो इतना तो हक बनता है मेरा और चिढाते हुए वह रुम से बाहर निकल गया और हँसते हुए बोलते गया अगर ऐसे गुस्साएगी तो यह पीक पोस्ट कर के लिख देगें मेरी पत्नी है और बाहर जाकर समर से बात करने लगा तब तक अम्बा भी तैयार हो कर चाय बनाने कीचन चली गई और चाय बनाकर जैसे ही पोटिको में लेकर गयी देखी दीप रंजन जा चुका था।
समर ने मजाक करते हुए कहाँ हो गई तैयार लगता है शादी घर में हमी लोग सबसे लेट पहुचने वाले है उसके बाद दोनों शादी में चले गए।
शादी के घर से भोज खाकर आने के बाद बिस्तर पर सोने के क्रम में अम्बा ने समर से इधर उधर की बात चीत के बाद बहुत सलीके से दीप रंजन की सेल्फी वाली बात समर को बता दी। समर सुनकर चौक गया उसने कहा ऐसा आदमी तो नहीं है वह बहुत इज्जत और सम्मान करता है वह हमदोनो का लेकिन फिर भी पता नहीं ऐसी हरकत कैसे किया अम्बा ने भी कहाँ सही कह रहे हैं ऐसा तो है नहीं बस मुंह फट और मजाकिया है दो चार बार आया तो ऐसा ही मैंने भी महसूस किया है कभी गलत रवैया नही देखा…. दोनों पति पत्नी बातें करते करते सो गए।
सुबह उठते ही समर ने दीप रंजन को फोन लगाया वक्त हो तो आ जाना नास्ते पर दीप रंजन ने हामी भर दिया और कुछ ही देर में आ गया उसके बाद बहुत सलीके से समर ने दीप रंजन से सेलफी वाली बात को पूछा तो हंसते हुए दीप रंजन ने भी स्वीकार किया और कहा हाँ भैया भाभी सच है यह बात । समर ने फिर समझाते हुए दीप रंजन से कहा यह तो गलत बात है न भाई ऐसी पीक किसी के नजर में आने से जानते हो न लोगों के सोच को रिश्ता चाहे कितना भी पाक पवित्र क्यों न हो लेकिन औरतो की इज्जत उछालने से बाज नही आते हैं लोग। दीप रंजन ने कहा भैया माना कि आप से मेरा रिश्ता खून का नहीं है लेकिन मैं आपकी और भाभी जी की बहुत इज्जत करता हूँ बहुत नेक दिल इंसान है आप दोनों यह मैं भी जानता हूँ दर असल बात यह है कि भाभी मेरी हँसी मज़ाक़ से चिढती है तो मुझे भी उन्हें चिढाने में मजा आता है कयी बार फोन पर और मिलने पर भी कहे भाभी जी आप लोगो को सीखाती है तो मुझे भी कुछ से कुछ सीख दीजिये न मैं भी संगीत के गुर जानना चाहता हूँ बस इसलिए मुझे लगा कि पीक रहेगा तो भाभीजी को छेडते रहेगे कि बाकी लोगों की तरह मुझे भी सीखा दे और मेरी भाभी जी के प्रति कोई गलत सोच या ऐसी कोई मंसा भी नहीं है ।
समर ने कहा मैं जानता हूँ यह बात तुम सिर्फ मुंह के खराब हो अगर ऐसा होते तो मैं खुद कभी बैठने तक नहीं देता दरवाजे पर। खैर हमदोनो पति पत्नी दूसरे के प्रति अच्छाई करने में ही बडे़ से बडे़ मिश्किलों में धिरे है लेकिन हमारा एक दूसरे के प्रति यकी विश्वास प्रेम ही है जो हर मिश्किलें पार कर जाते हैं ।
दीप रंजन को जैसे अपनी गलती पर आत्मग्लानि हो रहा था और गंभीर होकर बोला भैया सच में आप का और भाभीजी का प्रेम जाड़े में नर्म धूप और गर्मी में पत्ते की सरसराहट जैसी है जिसे कोई मुश्किल कोई मुसिबत कम नहीं होने दे सकता है ।
अम्बा दोनों हाथों में नास्ते का प्लेट लिए सामने खडी़ थी और बोली देवर जी मुझे तो फूलों से भी प्यार है और काँटों से भी प्यार है लेकिन सच कहूं तो ये दिल आपके भैया की मुहब्बत का तलबगार है और हंस पडीं और बोली अब तो डीलिट कर दीजिए सारी तस्वीर मैं ऐसे ही आपको सीखा दूगी….. हँसते हुए दीप रंजन ने भी समर के सामने फिर चिढाते हुए कहा भाभीजी तस्वीर नहीं लेते तो आप मुझे सीखाने के लिए कैसे तैयार होती यह सब तो मैं इसी के लिए किया था सच में भाभीजी यह घर और इस घर परिवार का सम्मान मुझे भी उतना ही है जितना आप सबको हैं भले में पराया हूँ लेकिन आप दोनों ने छोटे भाई जैसा स्नेह दिया है मुझे यह मैं कैसे भूल सकता हूँ निश्चित रहिये मैं तस्वीर डीलिट कर देता हूँ बस मुझे कभी गलत मत समझिएगा भाभीजी जी मेरी आदत तो जानते हैं न आपलोग नोकझोक हंसी मजाक करना भर ही आदत है मेरी लेकिन कभी किसी के साथ गलत नहीं किया है हमने भी बोलते बोलते दीप रंजन की आंखें भी छलक आई थी और अंतह कह गया ऐसा ही घर परिवार सबको मिले जहाँ इतना खुलापन इतना प्रेम हो आपस में जिसे कुछ देर के लिए कोई परेशान तो कर सकता है लेकिन तोड़ नहीं सकता है।।