
डॉ. हरि नाथ मिश्र, अयोध्या(उ0प्र0)
गजल
कभी भाग्य को आजमाया नहीं।
मुसीबत में आँसू बहाया नहीं।।
ज़माना भले लाख दुश्मन बने।
कभी पैर पीछे हटाया नहीं।।
कटे दिन मिरे मुफ़लिसी में बहुत।
कभी भी मग़र सर झुकाया नहीं।।
सुना,कल वो आए थे गाँव में।
किसी ने हमें ये बताया नहीं।।
जला आशियाना उसी आग से।
जिसे बादलों ने बुझाया नहीं।।
किए मुल्क को लूटकर खोखला।
सबक़ प्रेम माटी पढ़ाया नहीं।।
मिलेंगे यहीं पर वो कह कर गए।
अभी तक वचन को निभाया नहीं।।