
कवि रत्न डॉ. रामबली मिश्र, वाराणसी, उ. प्र।
अस्थिर जीवन
जीवन में स्थिरता कब है?
यह क्षणभंगुर जीवन जब है।
भाग रहा मन धन के पीछे।
मर जाता जब रुकता तब है।
चंचल चित्त सदा दौड़ाता ।
स्थिरता तन में नहिं अब है।
माया के चंगुल में फँस कर।
बहुत विकल मन सतयुग कब है?
मृगमरीचिका अति दुखदायी।
तृष्णा लिप्सा लालच जब हैं।
अति असहज जीवन मन काया।
सबको नचा रहा वह रब है।