
डॉ. हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
दोहा गजल (उत्तम सोच)
वर्तमान में जो मिले, लें उसका आनंद।
सुख-दुख दोनों मित्र हैं, सुन ले मन मतिमंद।।
आज अँधेरा ही रहे, तो भी हो न उदास।
लिए उजाला कल मिले, निश्चित मधु फल-कंद।।
साहस-धैर्य-विवेक से, संकट टले तुरंत।
हँसते जीवन को सदा, करता समय पसंद।।
करें भ्रमण प्रति-दिन सभी, और करें व्यायाम।
बागों में जाकर सदा, लें सुगंध – मकरंद ।।
जीवन जीएँ हों मुदित, तजकर कल की आस।
गीत-सृजन होते रहें, सजें ताल – लय – छंद ।।
अनुशासन-नियमन रहे, मन-चित रहे उदार।
अनुशासित जीवन सफल, पशु-जीवन स्वच्छंद।।
सदा सँवारें आज को, आज प्रगति-आधार।
बिना सवाँरे आज को, प्रगति-द्वार हो बंद।।