
काव्य रत्न डॉ. रामबली मिश्र, वाराणसी उ. प्र.।
प्यार
प्यार नहीं जो वापस आया।
एक झलक दे कर भरमाया।
देखा जब उसका आकर्षण।
उस मूरत ने रास रचाया।
मन में सोचा वह आयेगा।
किन्तु प्यार का पता न पाया।
याद सताती आजीवन है।
किन्तु प्यार ने पाठ पढ़ाया।
लौकिकता का प्यार काल्पनिक।
कभी लौट कर पास न आया।