
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र, वाराणसी।
मां की दुलारी राजकुमारी
माता की है सदा दुलारी।
प्यारी बेटी राजकुमारी।
अपनी मां का सहज जिगर है।
सुंदर गुड़िया रानी प्यारी।
आगे पीछे बेटी के मां।
लाड़ प्यार करती रहती मां।
जब बेटी को नहीं देखती।
व्याकुल हो कर खोजे श्री मां।
मां सूनी बिन राजकुमारी।
बेटी मोहक फूल कुमारी।
मां बेटी का रिश्ता अनुपम।
बिटिया अद्भुत अतुलित न्यार।
उसे खिलाकर तब खाती है।
दूध पिलाकर सुख पाती है।
माता की महिमा न्यारी है।
हमविस्तर हो सो जाती है।