
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा (जी.आजाद)
बारां (राजस्थान)
कैसे लोग हैं ये
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कैसे लोग हैं ये,
समझ लेते हैं हर किसी को,
अपना मालिक ये लोग।
कम से कम इन्होंने,
यह तो देखा होता,
कि कितना उज्ज्वल है,
वह कितना पवित्र है,
और वह कितना निर्दोष है,
जिसको मानते हैं ये अपना मालिक,
कैसे लोग हैं ये।
अगर खोट है उसमें भी,
तुम्हारी तरह ही,
अगर वह भी दागी है,
एक मुजरिम की तरह,
तो फिर क्यों भ्रमित हो जाते हैं,
क्यों हर किसी को समझ लेते हैं,
अपना नसीब ये लोग,
कैसे लोग हैं ये।
सिर्फ कुछ समय की,
लालसा मिटाने के लिए,
या फिर एक वक़्त की,
जठराग्नि बुझाने के लिए,
क्यों बेच देते हैं,
अपना ईमान ये लोग,
कैसे लोग हैं ये
सिर्फ एक दिन की,
सुखमय जिंदगी के लिए,
थोड़ा सा सुख-सम्मान,
पाने के लिए,
कुछ समय की,
खुशी-मौज पाने के लिए,
बिना अपनी सोच-बुद्धि के,
बना लेते हैं किसी को भी,
अपना सहारा-भगवान,
कैसे लोग हैं ये।