
डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या, (उ0प्र0)
किसान
कृषक (दोहे)
कृषक बैल-हल से करे, सतत जुताई-काम।
उगा फसल यह अन्नप्रद, कर दे महि सुख-धाम।।
धरती-पुत्र किसान यह, करता कर्म महान।
बैल और हल ले दवा, करता भूख-निदान।।
मिट्टी से लथपथ बदन, काया से अति क्षीण।
पर किसान मन का सबल, रह निज कर्म प्रवीण।।
सूखी मिट्टी भुरभुरी, रबी- फसल-आधार।
गीली-कीचड़ से सनी, हो खरीफ़ दरकार।।
उगा फ़सल दोनों कृषक, करे जगत-कल्याण।
उदर सभी का भर रहा, रक्षक जन-जन-प्राण।।
वंदनीय हे कृषक तुम, हो धरती-भगवान।
हर ऋतु-प्रहरी हो तुम्हीं, हे नर कर्म-प्रधान।।
रहे स्वस्थ-संपन्न यह, सब जन करें प्रयास।
गो-रक्षक-पालक यही, इसकी सबको आस।।