
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा (जी.आजाद)
बारां (राजस्थान)
देखकर ये रंग-बिरंगी कलियां
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देखकर ये रंग-बिरंगी कलियां,
ये महके हुए फूल,
देखकर इनको,
कभी मेरी भी चाहत होती है,
कि लगा लूं मैं इनको गले,
और जाकर चूम लूँ इनके लब।
देखकर ये झिलमिलाते अंजूम,
आता है मुझको भी,
कभी वह ख्याल,
अपने अतीत के,
सपनों की सुंदर तस्वीर का,
अपने उस प्यारे संसार का,
अपनी उस आबाद फिजा का।
लेकिन जब सोचता हूँ,
कि यह सब मायाजाल है,
एक मोह है जीवन का,
तब नष्ट हो जाती है,
अपनी सारी इच्छाऐं,
एक चमन लगाने की इच्छाओं,
कभी मेरे मन में भी पैदा हुई थी।
शायद ये सब एक स्वार्थ है,
बिना लाभ के कौन कोशिश करता है,
बिना मतलब के कौन बाग सींचता है,
बिना लालच के कौन दीपक जलाता है,
वास्तव सब लाभ ही पालते हैं मन में,
बिना स्वार्थ तो बिरले ही काम करते हैं,
जैसे ये फूल, सितारें, नदियां, हवा।