बालमन का सुन्दर विश्लेषण करती है बाल-प्रज्ञान।

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सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’

3 फ 22 विज्ञान नगर, कोटा- (राजस्थान)

 

बालमन का सुन्दर विश्लेषण करती है बाल-प्रज्ञान।

सन् 1989 में हरियाणा में जन्मे डॉ. सत्यवान सौरभ बालसाहित्य के एक सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। साहित्यकार, पत्रकार और अनुवादक डॉ. सत्यवान सौरभ ने बच्चों के साथ ही बड़ों के लिए भी विपुल साहित्य सर्जन किया है। बाल कविता की पुस्तकों के साथ ही प्रौढ़ साहित्य में दोहा, कथा, कविता, अनुवाद, रूपान्तर, सम्पादन की कई कृतियों का सर्जन कर उन्होंने हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। बीस वर्षों से स्वतंत्र रूप से लेखन कर साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं।

बाल प्रज्ञान, बाल साहित्यकार डॉ. सत्यवान सौरभ जी की बाल कविताओं का सुन्दर संग्रह है। कवि की सभी रचनाएँ बाल मनोविज्ञान के अनुरूप हैं और बच्चों के मन का सुन्दर विश्लेषण करती हैं। बच्चों को बरसात के पानी में भीगना बहुत भाता है। बरसात की रिमझिम फुहारों में वे गर्मी की सारी तपन को भूलकर झूम उठते हैं। ‘रिमझिम-रिमझिम बारिश आई’ कविता में कवि बरसात के साथ बच्चों के इसी सम्बन्ध को अभिव्यक्त करते हुए कहता है-

” चली हवाएँ करती सन-सन।

झूम उठे हैं सबके तन-मन॥

बादल प्यारे गीत सुनाते।

बच्चे मिलकर धूम मचाते॥

जीव जन्तु और खेत हर्षाए।

पंछियों ने पँख फैलाए॥”

इस बालकविता संग्रह की पहली कविता ‘बने संतान आदर्श हमारी’ में कवि ने किसी भी माता-पिता की होने वाली संतान का सुन्दर चित्रण किया है। बालमन के स्तर पर उतरकर कवि ने भावना को सहज रूप से मुखरित करते हुए कहा है-

” बने संतान आदर्श हमारी, वह बातें सिखला दूँ मैं।

सोच रहा हूँ जो बच्चा आये, उसका रूप, गुण सुना दूँ मैं॥

बाल घुंघराले, बदन गठीला, चाल, ढाल में तेज भरा हो।

मन शीतल हो ज्यों चंद्र-सा, ओज सूर्य-सा रूप धरा हो॥

मन भाये नक्स, नैन हो, बातें दिल की बता दूँ मैं।

बने संतान आदर्श हमारी, वह बातें सिखला दूँ मैं॥”

‘नानी’ इस संग्रह की लम्बी कविता है जिसमें बाल सुलभ शरारतों का यथार्थ और आकर्षक वर्णन किया गया है। बच्चे घर में उछलकूद कर सारा घर अस्त-व्यस्त कर देते हैं। जब उन्हें कोई रोकता है तो मन में खीज पैदा होती है। कवि ने बच्चों की इसी चंचलता का पक्ष रखते हुए कहा है-

” मन चाहे मैं बाहर घूमूँ।

मस्ती सब के साथ करूँ।

खेलूँ दौडू सबके संग मैं,

कुश्ती में दो हाथ करूँ॥

जी भर के मैं तैरूँ जाकर,

पकड़े तो मैं हाथ न आऊँ।

बचपन चाहता केवल मस्ती,

सबको मैं ये बात बताऊँ॥

नानी-नानी कहो मम्मी से,

इस बन्धन को दूर भगाएँ।

हम सब बच्चे घर से निकलें,

खेलें-कूदें मौज मनाएँ॥”

‘बाल प्रज्ञान’ बाल कविता संग्रह की उक्त कविताओं के उदाहरणों से स्पष्ट है कि कवि श्री डॉ. सत्यवान सौरभ बालमन के कुशल पारखी हैं। वे बच्चों को भाने वाले विषयों के साथ ही उनके लिए उपयोगी विषयों को भी अच्छी तरह से जानते हैं। उनका बालमन, बच्चों के साथ बहुत रमता है। संग्रह की शेष रचनाएँ भी बालमन को आकर्षित करने वाली हैं। ये कविताएँ जीवन के विविध पक्षों पर सकारात्मक दृष्टि से विचार करती हुई, बच्चों को संस्कारित करने का काम करती हैं। ‘मन को भाता है कम्प्यूटर’ कविता में कंप्यूटर के माध्यम से कंप्यूटर का महत्त्व बताते हुए उसे अनमोल कहा गया है। ‘तितली रानी’ कविता, आधुनिक समय में पक्षियों के महत्त्व पर प्रकाश डालती है। ‘हरियाली तुम आने दो।’ रचना, बचपन में बच्चों द्वारा पेड़-पौधें पसंद करने के आनन्द पर आधारित है। ‘दादा-दादी’ एक बाल सजल है जिसमें बच्चों की दादी के घर जाने की उत्सुकता अभिव्यक्त की गई है। दादी के घर में बच्चों को दादा-दादी, बुआ और चाचा का प्यार मिलता है।

‘करो स्कूल की सब तैयारी’ कविता बच्चों के विद्यालय जाने के उत्साह को शब्दायित करती है। ‘कितने सारे आम’ कविता में पेड़ पर लटके कच्चे-पक्के आम बच्चों को लुभाते हैं। ‘सेहत का खजाना’ कविता में सब्जियों के गुणों का बखान किया गया है। ‘पुलिस हमारे देश की’ कविता, बच्चों में देश सेवा की भावना को लाती है। ‘सदा तिरंगा यूं लहराये’ कविता, बच्चों को अच्छी बातें अपनाकर जीवन को सफल बनाने का संदेश देती है। ‘चिट्ठी’ कविता में आज के समय में चिट्ठियों के नहीं लिखने पर चिन्ता व्यक्त की गई है। चिट्ठियाँ नहीं आने से डाकिया भी बहुत दिनों के बाद कभी-कभार ही दिखाई देता है।

‘गिलहरी’ कविता में छुट्टी के दिन बच्चों द्वारा पार्क में पिकनिक मनायेाजते वक़्त गिलहरी का सजीव वर्णन है। ‘प्यारी चिड़िया रानी’ कविता में मानव द्वारा जंगलों को उजाड़ने के कारण वन्य जीवों पर आए संकट का मार्मिक चित्रण है। ‘दूधवाला’ कविता में कवि मार्मिकचित्र बनाता है, ‘फूलों की सीख’ कविता में रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी दी गई है। ‘चंदा मामा’ कविता बचपन में हिलमिल कर रहे तारों के बीच चाँद सेबच्चों को मिलने वाली सीख को दर्शाती है। ‘ऋतु बसन्त है आई’ कविता में बसन्त ऋतु में प्रकृति में आए निखार को दर्शाया गया है। ‘आ री आ, ओरी गौरैया’ कविता में छोटी—सी चिड़िया गौरैया के प्रति बच्चों के प्रेम को चित्रित किया गया है। ‘पूसी-मौसी, मरियल-मंकी’ कविता में पूसी बिल्ली, मरियल मंकी और लालू कुत्ते की दोस्ती के माध्यम से सबको आपस में मिलजुल कर रहने का संदेश दिया गया है। ‘रंग-बिरंगी’ कविता में एक बच्चा दादू से पिचकारी खरीदने को कहता है ताकि वह अपने मित्रो के साथ मस्ती से होली खेल सके। यह कविता, त्यौहारों के प्रति बच्चों के उत्साह को प्रकट करती है।

बाल कविता संग्रह ‘बाल प्रज्ञान’ की सभी कविताएँ कवि के मौलिक और यथार्थपरक चिन्तन पर आधारित हैं जो बच्चों को अपने आस-पास के परिवेश की महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती हैं। ये कविताएँ जहाँ आज के बच्चों की शहरी जीवन शैली का परिचय कराती हैं, वहीं कवि के प्रकृति के प्रेम का भी परिचय देती हैं। ये कविताएँ आधुनिक भावबोध की कविताएँ हैं जो बदली परिस्थितियों का सामना करने के लिए बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करती हैं। इन कविताओं की भाषा पढ़े-लिखे परिवारों की बोलचाल की भाषा है जिसमें हिन्दी और अंग्रेज़ी के शब्दों का मिलाजुला प्रयोग होता है। ये कविताएँ बच्चों से सम्बन्धित विषयों को संवेदनशीलता और सकारात्मक सोच के साथ उजागर करती हैं। कवि ने समसामयिक विषयों को बालमन की कोमलता के साथ स्पर्श किया है। बच्चों से संवाद करती ये कविताएँ बालमन को मनोरंजन प्रदान करने के साथ ही उन्हें स्वस्थ चिन्तन के लिए प्रेरित करती हैं। बालोपयोगी सुन्दर कृति ‘बाल प्रज्ञान’ के सर्जन के लिए कविवर श्री डाॅ। सत्यवान सौरभ जी को हार्दिक बधाई।

 

 

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