
डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या, (उ0प्र0)
खौफ मौसम का
मौसम का रुख कुछ है बदला,
लगता तूफ़ान है आने वाला।
अभी तक रही चाँदनी जो यहाँ-
हो गया उसका धुँधला उजाला।।
लगता तूफ़ान………….।।
शोर करने लगीं हैं हवाएँ,
काँपने अब लगीं हैं दिशाएँ।
नभ में बादल उमड़ने लगे हैं-
पेट सरिता का है भरने वाला।।
लगता तूफ़ान………..।।
तोड़ तट-बंध को जल बहेगा,
नष्ट फसलों को अब वह करेगा।
बाढ़ का हो निरंकुश यह पानी-
छिनने वाला है मुख का निवाला।।
लगता तूफ़ान……………।।
ज़िंदगी की सुनोगे रुलाई,
होगी खुशियों की झट-पट विदाई।
सुख लुटाती हुई ज़िंदगी का-
अब तो निकलेगा सारा दिवाला।।
लगता तूफ़ान………….।।
जग सुरक्षित रहेगा अगर जब,
सुख की सरिता बहेगी यहाँ तब।
प्यार कर लो प्रकृति से ज़रा सा-
सुख को मारे कभी भी न पाला।।
लगता तूफ़ान……………।।
पेड़-पर्वत-नदी की रवानी,
हैं ये क़ुदरत की सारी निशानी।
इनकी रक्षा स्वयं की है रक्षा-
प्यार क़ुदरत से कर लो निराला।।
लगता तूफ़ान…………..।।
क़ुदरत सुरक्षित तो जीवन सुरक्षित,
जीवन सुरक्षित,न खुशियों से वंचित।
यही धारणा यदि रहेगी सदा तो-
नहीं बाल बाँका कभी होने वाला।।
लगता तूफ़ान है आने वाला।।
प्यार क़ुदरत से कर लो निराला।।